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बिहार बोर्ड मैट्रिक हिंदी का महत्पूर्ण सब्जेक्टिव क्वेश्चन जो बोर्ड एग्जाम के लिए काफी ज्यादा इम्पोर्टेड है। ( Matric hindi vvi subjective )
प्रश्न 1. कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इसका शीर्षक नौकर क्यों नहीं रखा। ( 10th hindi long question )
उत्तर- प्रस्तुत कहानी में एक बालक का चित्रण किया गया है। बालक जो लेखक के घर में नौकर का काम करता है कहानी का मुख्य पात्र है। इसमें बहादुर नौकरी करने के पूर्व स्वछंद था । वहाँ माँ से मार खाने के बाद घर से भाग गया था। उसके बाद लेखक के घर काम करने के लिए रखा जाता है। यहाँ उसके नौकर के रूप में चित्रण के साथ-साथ उसके बाल-सुलभ मनोभाव का चित्रण भी किया गया है।
ईमानदार, कर्मठ एवं सहनशील बालक के रूप में चित्रित है। प्रताड़ना, झूठा आरोप उसे पसंद नहीं था । अंततः फिर वह भागकर स्वछंद हो जाता है साथ ही लेखक के पूरे परिवार पर अपने अच्छी छवि का चित्र अंकित कर जाता है। ऐसे में बहादुर ही इसका नायक कहा जा सकता है। इस कहानी के केन्द्र में बहादुर है। अतः यह शीर्षक सार्थक है। इसमें बालक को केवल नौकर की भूमिका में नहीं रखा गया है बल्कि उसमें विद्यमान अन्य गुणों की चर्चा की गई है। इसलिए नौकर शीर्षक नहीं रखा गया ।
प्रश्न 2 . मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ। व्याख्या करें।
उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक हिंदी साहित्य के ललित निबंध नाखून क्यों बढ़ते हैं शीर्षक से उद्धृत है। इस अंश में प्रख्यात निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी बार-बार काटे जाने पर भी बढ़ जानेवाले नाखूनों के बहाने अत्यन्त सहज शैली में सभ्यता और संस्कृति की विकास गाथा उद्घाटित करते हैं।
प्रस्तुत व्याख्येय अंश पूर्ण रूप से लाक्षणिक वृत्ति पर आधारित है। लाक्षणिक धारा में ही निबंध का यह अंश प्रवाहित हो रहा है लेखक अपने वैचारिक बिन्दु को सार्वजनिक करते हैं। मनुष्य नाखून को अब नहीं चाहता । उसके भीतर प्राचीन बर्बरता का यह अंश है जिसे भी मनुष्य समाप्त कर देना चाहता है लेकिन अगर नाखून काटना मानवीय प्रवृत्ति और नाखून बढ़ाना पाश्विक प्रवृति है तो मनुष्य का उद्धरण बन गया है।
प्रश्न 3. परंपरा का मूल्यांकन’ निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है? उसे साकार करने में परंपरा का क्या भूमिका हो सकती है? विचार करें। ( 10th hindi long question )
उत्तर:- परंपरा का मूल्यांकन निबंध का समापन करते हुए लेखक ने साहित्यिक परंपरा के ज्ञान-विस्तार का स्वप्न देखता है। इसके लिए उन्होंने समाजवादी व्यवस्था को उत्तम माना है। लेखक कहते हैं कि समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति से नाता नहीं तोड़ती है। लेखक आशा करते हैं कि जब जनता साक्षर होगी। साहित्य पढ़ने का उसे अवकाश होगा तब व्यास और वाल्मीकि के करोड़ों पाठक होंगे। किसी भी साहित्यिक रचना को उसके मूल भाषा में पढ़ने वाले बहुसंख्यक होंगे। भारतीय साहित्य मानव संस्कृति की विशद धारा प्रवाहित करने में नवीन योगदान देगी। अर्थात् लेखक का साहित्यिक विकास के प्रति आशावादी दृष्टिकोण है।
प्रश्न 4. जातीय और राष्ट्रीय अस्मिताओं के स्वरूप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है।
उत्तर:- लेखक ने जातीय अस्मिता एवं राष्ट्रीय अस्मिता के स्वरूप का अन्तर करते हुए दोनों में कुछ समानता की चर्चा की है। जिस समय राष्ट्र के सभी तत्वों पर मुसीबत आती है, तब राष्ट्रीय अस्मिता का ज्ञान अच्छा हो जाता है। उस समय साहित्य परम्परा का ज्ञान भी राष्ट्रीय भाव जागृत करता है। जिस समय हिटलर ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया, उस समय यह राष्ट्रीय अस्मिता जनता के स्वाधीनता संग्राम की समर्थ प्रेरक शक्ति बनी। इस युद्ध के दौरान खासतौर से रूसी 1 जाति ने बार-बार अपनी साहित्य परम्परा का स्मरण किया। समाजवादी व्यवस्था और कायम होने पर जातीय अस्मिता खण्डित नहीं होती वरन् पुष्ट होती है।
प्रश्न 5 ‘नागरी लिपि’ पाठ का सारांश लिखें।.
अथवा, देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं?
उत्तर :- हिन्दी तथा इसकी विविध बोलियाँ देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। नेपाली, जेवारी और मराठी की लिपि भी नागरी है। संस्कृत और प्राकृत की पुस्तक भी देवनागरी में ही प्रकाशित होती है। गुजराती लिपि भी देवनागरी से बहुत भिन्न नहीं। बंगला लिपि भी प्राचीन नागरी लिपि की बहन ही है। सच तो यह है कि दक्षिण भारत की अनेक लिपियाँ नागरी की भाँति ही प्राचीन ब्राह्मी से विकसित हैं।
बारहवीं सदी के श्रीलंका के शासकों के सिक्के पर भी नागरी अक्षर मिलते हैं महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह ने भी अपने नाम नागरी में और अकबर के सिक्के में भी ‘रामसीय’ शब्द अंकित है। वस्तुतः ईसा की आठवीं-नौवीं सदी से नागरी लिपि का प्रचलन सारे देश में था।
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