Inter hindi chapter 6
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Inter hindi chapter 6 : बिहार बोर्ड इंटर हिंदी अध्याय 6 तुमुल कोलाहल कलह महत्पूर्ण लघु दीर्घ उतरिये प्रश्न

Inter hindi chapter 6

Written by Mukesh yadav
Written by Mukesh yadav

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बिहार बोर्ड इंटर हिंदी अध्याय 6  तुमुल कोलाहल कलह में कवि परिचय जयशंकर प्रसाद

    (1889-1937)

जन्म जन्म स्थान वाराणसी उतर प्रदेश

पिता देवी प्रसाद साहू

| शिक्षा आठवीं तक संस्कृत, हिन्दी, फासी, उर्दू, की शिक्षा घर पर नियुक्त शिक्षकों द्वारा विशेष परिस्थित- बारह वर्ष की अवस्था में पितृवाहिनी। दो वर्ष बाद माता की मृत्यु

                          गृहकलह

कृतियाँ – इंदु ( 1909) में प्रकाशित जिसमें कहानी नाटक इत्यादि शामिल प्रमुख झरना (1918) आँसू (1925) लहर (1933), महारणा का महत्व, करूणालय, प्रेम पथिक कामायनी, छाया, इंद्रजाल, कंकाल इत्यादि

छायावाद के कवि

कामायनीकामायनी कुल 15 सर्ग

मन मनुष्य का मन

Inter hindi chapter 6

श्रद्धा मनुष्य का हृदय इड़ा मनुष्य की बुद्धि

जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ई. में वाराणसी में सुधनी साहू परिवार में हुआ। इनके | पिता देवी प्रसाद साहू के यहाँ साहित्यकारों को बड़ा सम्मान मिलता था। प्रसाद ने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा क्वींस कॉलेज से प्राप्त की, परन्तु परिस्थितियों से मजबूर होकर उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा तथा घर पर ही संस्कृत, फारसी, उर्दू और हिन्दी का अध्ययन किया। किशोरावस्था में ही माता-पिता तथा बड़े भाई का देहान्त हो जाने के कारण परिवार व्यापार का उत्तरदायित्व इन्हें सम्हालना पड़ा, जिसे इन्होंने हँसते-मुस्कुराते हुए संभाला। उनका जीवन संघर्षों और कष्टों में बीता।

पर साहित्य-सृजन और साहित्य अध्ययन के प्रति वे सदैव जागरूक रहे। सन् 1937 में इनका देहावसान हुआ। जयशंकर प्रसाद हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं। वे कवि, नाटककार, कहानीकार तथा उपन्यासकार के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। उन्हें हिन्दी को रवीन्द्र कहा जाता है। चित्रधारा, काननकुसुम, प्रेमपथिक, महाराणा की महत्त्व, झरना, लहर, आँसू तथा कामायनी उनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं।

Inter hindi chapter 6

बिहार बोर्ड इंटर हिंदी अध्याय 6 महत्वपूर्ण तुमुल कोलाहल कलह महत्पूर्ण लघु उतरिये प्रश्न।

 

प्रश्न 1. ‘हृदय की बात’ का क्या कार्य है?

घनघोर कोलाहल, अशांति और कलह के बीच | हृदय की बात का कार्य मस्तिष्क को शांति पहुंचाना, उसे आराम देना है । मस्तिष्क व विचारों को कोलहल से घिरा जाता हे तो हृदय की बात उसे आराम देती है। हृदय कोमल भावनाओं का प्रतीक है जो मस्तिष्क को विचारों के कोलाहल से दूर करता है।

प्रश्न 2. कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है?

उत्तर- छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में शीर्षक कविता में उषाकाल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व सम्पूर्ण विश्व अंधकार में डूबा रहता है। उषाकाल होते हुए सूर्य की रोशनी अंधकाररूपी जगत में आने लगती है। सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है। सभी जीव जन्तु अपनी गतिविधियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। जगत् में एक आशा | एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है। उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में की है।

 

प्रश्न 3. चातकी किसके लिए तरसती है?

 

उत्तर- चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है ।। वह सालोंभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती है। | और जब स्वाति का बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण सांकेतिक है। दुःखी व्यक्ति सुख प्राप्ति को आशा में चातकी के समान उम्मीद बाँधे रहते हैं। कवि के अनुसार एक न एक दिन उनके दुःखों का अंत होता है।

 

प्रश्न 4. बरसात की ‘सरस’ कहने का क्या अभिप्राय है

 

उत्तर-बरसात जलों का राजा होता है। बरसात में चारों तरफ जल ही जल दिखाई देते हैं। पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं। लोग बरसात में आनन्द एवं सुख का अनुभव करते हैं। | उनका जीवन सरस हो जाता है अर्थात् जीवन में खुशियाँ | आ जाती हैं। खेतों में फसल लहराने लगते हैं। किसानों के लिए समय तो और भी खुशियाँ लानेवाला होता है। इसलिए कवि जयशंकर प्रसाद ने बरसात को सरस कहा है।

प्रश्न 5. “सजल जलजात” का क्या अर्थ है?

उत्तर- ‘सजल जलजात’ का अर्थ जल भरे ( रस भरे) कमल से है। मानव-जीवन आँसुओं का सराबोर है। | उसमें पुरातन निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस चातकी सरोवर में आशा एक ऐसा जल से पूर्ण कमल है जिस पर भौरे मँडराते हैं और जो मकरंद (मधु) से परिपूर्ण है।

प्रश्न 6. कविता में विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है,

वहकिस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए । उत्तर- प्रसाद लिखित ‘तुमुल कोलाहल कलह में शीर्षक कविता के द्वितीय पद में ‘विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है। कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कोलाहलपूर्ण है। कवि संसार की वर्तमान कोलाहलपूर्ण स्थिति से क्षुब्ध है। इससे | मनुष्य का मन चिर-विषाद में विलीन हो जाता है। मन में घुटन महसूस होने लगती है। कवि अंधकाररूपी वन में व्यथा (दु:ख) का अनुभव करता है। सचमुच, वर्तमान संसार में सर्वत्र विषाद एवं ‘व्यथा’ ही परिलक्षित होता है।

बिहार बोर्ड इंटर हिंदी अध्याय 6 महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ  प्रश्न 

•1. ‘आँसू’ किसकी रचना हैं ?

• A. महादेवी वर्मा

B. जयशंकर प्रसाद

C. सुमित्रान्दन पंत

D. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

2. जयशंकर प्रसाद के कौन-सी कविता लिखि हैं ?

• A. पुत्र वियोग

B. तुमुल कोलाहल कलह में

C. उषा

D. हार-जीत

• 3. जयशंकर प्रसाद का जन्म कब हुआ था?

(क) 1889 ई. में

(ख) 1870 ई. में (ग) 1880 ई. में

(घ) 1875 ई. में

उत्तर- (क)

• 4. जयशंकर प्रसाद के पितामाह कौन थे ?

A. शिवरत्न साहु

B. शिवजतन साहु

D. इनमें से कोई नहीं

C. शिवपरसन साहु

•5. जयशंकर प्रसाद कितनी वर्ष की अवस्था में

पितृविहीन हुए थे ?

• A. 8

B. 12

C. 16

D. 20

•6. जयशंकर प्रसाद हिन्दी साहित्य के किस काल के

कवि थे ?

• A. रीतिकाल

B. आदिकाल

C. आधुनिकाल

D. भक्तिकाल

7. ‘सजल जलपात’ में कौन सा अलंकार हैं ?

• A. रूपक

B. यमक

C. उपमा

D. श्रेष

• 8. मैं उपा की ज्याति में कौन सा अलंकार हैं ?

• A. श्रेष

B. अनुप्रास

C. उपमा

D. यमक

• 9. इनमें से कौन सी पुस्तक प्रसाद जी की हैं ?

• A. झरना

B. विपथगा

C. सूरजमुशी अंधेरे के

D. चितकोबरा

•10. जयशंकर प्रसाद की कौन सी कृति अपूर्ण हैं ?

• A. तितली

B. लहर

C. इरावती

D. ध्रुवस्वामिनी

 

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बिहार बोर्ड इंटर हिंदी अध्याय 6 महत्वपूर्ण दिर्घ  उतरिये प्रश्न 

 

प्रश्न 1. पठित कविता के संदर्भ में प्रसाद की काव्यभाषा पर टिप्पणी लिखें।

उत्तर- जयशंकर प्रसाद छायावादी कवि हैं तथा उनके काव्य में

प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण है। पठित कविता ‘तुमुल कोलाहल

| कलह में’ की काव्यभाषा छायावादी है । प्रस्तुत कविता में

| मानव-जीवन में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण है। प्रकृति सौन्दर्य

का गुण भी इसमें मिलता है। नारी की गरिमा का वर्णन बड़ा ही

सुन्दर ढंग से किया गया है। कविता में रस, छन्द, अलंकार आदि

का प्रयोग हुआ है इसमें रूपक अलंकार की प्रधानता है ।

प्रश्न 2. कविता से रूपक अलंकार के उदाहरण चनें।

 

उत्तर- जहाँ गुण का अत्यन्त समानता के कारण उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाय, वहाँ रूपक अलंकार होता है। यह आरोप कल्पित होता है। इसमें उपमेय और उपमान में अभिन्नता होने पर भी दोनों साथ-साथ विद्यमान रहते हैं, यथा चिर – विषाद विलीन मन की। यहाँ चिर (उपमेय) पर विषाद (उपमान) का आरोप है। उसी प्रकार निम्न पंक्तियों में रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है जहाँ मरु-ज्वाला, धधकती, इस झुलसते विश्व-वन की, चिर- निराशा नीरधर से, मैं सजल जलजात रे मन।

 

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