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बिहार बोर्ड इंटर हिंदी में पूछे जाने वाले मोस्ट इंपोर्टेंट लघु उत्तरीय प्रश्न Short Question ) एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ( long Question ) इस आर्टिकल ( post) के द्वारा बताया जाएंगे। इस आर्टिकल में जितने भी प्रश्न (Question )दिए गए हैं जो बोर्ड एग्जाम के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। तो इस आर्टिकल ध्यानपूर्वक पढ़ें।
इंटर हिंदी महत्वपूर्ण लॉन्ग प्रश्न ( Long Question )
1 छायवाद की पाँच विशेषताये बताइये ।
छायावादी काव्य आंदोलन के पीछे भारतीय संस्कृति नवजागरण की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। छायावादी प्रवृति का प्रधान प्रभाव सन 1920 से 40 तक रहा। आधुनिक युग के हिंदी काव्य के अंतर्गत इस प्रवृत्ति के आगमन का कारण अत्यंत ही सुस्पष्ट है। सन 1920 के पूर्व जो सामाजिक धार्मिक एवं दर्शनिक आंदोलन थे। उसने छायावादी कविता को कॉफी प्रभावित किया। निराला की राम की शक्ति पूजा शीर्षक कविता पर रामकृष्ण देव और विवेकानंद का प्रभाव है। अनामिका की अनेकों कविताएं भी विवेकानंद एवं राम कृष्ण के दर्शन से प्रभावित हैं। छायावाद नए युग के सपनों के अनुकूल मानवीय संबंधों स्थापना का प्रयास था।
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पंत, प्रसाद निराला एवं महादेवी ने द्विवेदी युगीन ब्रह्मा नैतिकता और अस्वीकार करते हुए विवाह को आरोपित ना मानकर प्रेम के आधार पर प्रतिष्ठा किया। छायावादी कवि प्रेम के लिए आजादी चाहते थे फर्स्ट ऑफ महादेवी विवाह के प्रचलन स्वरूप कन्यादान का विरोध करती है। छायावादी कवियों की समाज में सच्चा प्रेम कभी भी अनैतिक नहीं होता।
2 सप्रसंग व्याख्या करें।
बड़ा कठिन है बेटा खोकर,
मां को अपना मन समझना।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान रचित ‘पुत्र वियोग’ कविता से ली गई है। प्रत्येक माँ के हृदय अपने पुत्र लिए असीम ममता का सागर उमड़ता रहता है। किसी भी अवस्था में कोई भी माँ अपने पुत्र को खोकर शांत नहीं रह सकती। पुत्र की मृत्यु के हृदय में जो वेदना उठती है उसका निदान करना असंभव- सा प्रतीत होता है। जब किसी प की असामयिक मृत्यु हो जाती है तो उस समय माँ को अपना मन समझाना बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि उसकी ममता का तार टूट चुका रहता है। उसका जीवन असहाय और विवश हो जाता है।
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3 शहरी जीवन पर निबंध लिखिए।
( शहरी जीवन )
हमें यदि राजमार्गो से निकल जाएं तो पाएंगे कि धुआं उड़ती कोलाहल करती मरण का, आमंत्रण लुटाती, टैक्सियों, बसें और ट्रमगाड़ियां बेतहाशा भागी जा रही है जिनमें मनुष्य निर्जीव पार्सल के पैकेट की तरह साहस भरे हैं। इन राजमार्गों के दोनों और आकाश आश्लेषि अट्टालिकाएँ हैं, जिनमें मरकरी और नायलन बल्बों की रोशनी दूधिया चाँदनी को चुनौती दे रही हैं, जिनके प्रकाश में बैठे तुदिल व्यापारियों की जेबकतरा मुस्कानें बिछल रही हैं, किनारे-किनारे अपार जनसमूह का समुंदर लहरा रहा है। सजी-धजी दुकानों में हवाखोरी को निकली नागिन-सी रूपसियों की भीड़ उमड़ आई है। गगन में चाँद का कौन पता लगाए,
इस अपार भीड़ में जहाँ-तहाँ चाँद का झुण्ड ही नजर आ रहा है। सब भाग रहे हैं। बेतहाशा भाग रहे हैं। कारखानों से झुलसे लोग, दफ्तरों से चुसे लोग, मजदूरी की चक्की में पिसे लोग, दिनभर के कामों में घिसे लोग। बाहरी चकाचौंध में नरों के स्फूर्तिहीन कार्टून किसी विद्युत-तरंग पर भागते चले जा रहे हैं। यहाँ पग-पग पर मानवस्वेद का अथाह पंक पड़ा दिखता है, विज्ञान के इन्द्रजाल नजर आता है।
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काउपर ने ठीक कहा था कि नगर मनुष्य की दुनिया है, परंतु गाँव ईश्वर की। शहरों में प्रकृति की हर कला ध्वस्त हो चुकी है और उसके श्मशान पर उभर आई है, एक नई दुनिया। यहाँ ईश्वर के हाथों निर्मित हरसिंगार मोहक गंध नहीं बिखेरता, वरन बंद शीशियों में बैठे फाहे गंध लुटाते हैं।
यहाँ चाँद और सितारों की महफिल नहीं सजती, वरन् बल्बों की बारात सजती है। यहाँ पहाड़ की गोद में झरने नहीं मचलते, वरन् लोहे के यंत्र से अशुद्ध जल के फव्वारे छूटते हैं। यहाँ दूर-दूर गंधमाती हवा तन-मन में स्फूर्ति नहीं उत्पन्न करती, वरन् कमरे के कैद हवा ही विद्युत यंत्रों के द्वारा चक्कर) काटती है, यहाँ पक्षियों की नैसर्गिक रागिनी नहीं सुनाई पड़ती, वरन् कर्णस्फार ध्वनिविस्तार-यंत्र से बेताल राग चीखता है।
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शहर में जब रात गहराती है, तब भीड़-तमाशाबीनी का ज्वार थमता नजर आता है। सड़कें उदास हो जाती हैं, व्यापारिक रोशनी की बहार कम हो जाती है। एक ओर नभचुंबकी वातानुकूलित भवनों में करोड़पति करवटें बदलते रहते हैं, तो दूसरी ओर खुले आकाश की छत के नीचे फुटपाथों पर हजार-हजार लोग खराटे लेते नजर आते हैं।
या असूर्यपश्या गलियों के डस्टबिनों में न मालूम कितने श्वान उच्छिष्ट उकटते नजर आते हैं। नगर में स्पष्ट दिखाई पड़ने लगता है कि परमात्मा ने यह दुनिया नहीं बनाई। यदि उसने यह दुनिया बनाई होती, तो आदमी-आदमी के बीच इतनी दुर्लध्य खाई नहीं होती, आकाश-पताल की ऐसी दूरी नहीं होती। नर का बाह्य तन तो बड़ा आकर्षक है।
किन्तु उसका अंतःकरण कुरूप और घिनौना, जैसे कोई कनक-घट विषरस से भरा हो। यहाँ के मनुष्य बहुत बातूनी, बहुत बनावटी होते हैं। शिष्टाचार के नाम पर बातों में तो यहाँ के लोग मिसरी घोलते हैं, ओठों से शहद टपकाते हैं, किन्तु इनके हृदय में छल और कपट का जहर भरा रहता है। ये बिल्कुल मयूरधर्मी लोग हैं, जिनके आवरण तो बड़े ही चमकीले और इंद्रधनुषी हैं, किन्तु आहार साँप जैसा जहरीला जंतु।
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आप शहर में चल रहे हैं, तो हर वक्त अपना एक पाँव कब्र में रखिए या कफन खरीदकर पहले से अपने पास रख लीजिए। पता नहीं, कौन-सा ट्रक आपको धक्का देकर भाग जाए, कौन-सा ताँगा आपकी टाँगों को तोड़कर रफ्फूचक्कर हो जाए, कौन-सा गुंडा आपके सीने में कटार घुसेड़कर चंपत हो जाए। जेब काटना, सामान छीन लेना तो मामूली बात है।
कब कोई किसी अबला का बलात्कार कर दे, कब कोई आपके मासूम बच्चे को उड़ाकर भाग जाए। किसी समय आपकी जान, आपका माल, आपकी इज्जत सुरक्षित नहीं है। जितनी देर जो बच पाता है, उसे संयोगमात्र समझिए। बात-बात पर गुस्सा, बात-बात पर हड़ताल, बात-बात पर उत्पात।
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