Mhgae par nibndh likhe
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महगाई

कमरतोड़ महगाई का सवाल आज के मानव को अनेकानेक समस्याओं में अहम् बन गया है। पिछले कई सालों से उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं । हमारा भारत एक विकासशील देश है और इस प्रकार की अर्थव्यवस्था वाले देशों में भी बदलाव होता।

औद्योगीकरण या विभिन्न योजनाओं आदि के चलते मुद्रा-स्फीति तो होती ही है, किन्तु आज वस्तु की मूल्य सीमा में निरन्तर वृद्धि और जन-जीवन अस्त-व्यस्त होता दीख रहा है। अब तो सरकार भी जनता का विश्वास खोती जा रही है। लोग यह कहते पाए जाते हैं कि सरकार का शासन का भ्रष्ट हो चुका है, जिसके कारण जनता बेईमानी, नौकरशाही तथा मुनाफाखोरी की चक्कियों तले मि रही है। स्थिति विस्फोटक बन गई है।

यह महगाई स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लगातार बढ़ी है। वह भी सत्य है कि हमारी राष्ट्रीय आग बड़ी है और लोगों की आवश्यकताएँ भी बढ़ी हैं। हम आरामतलब और नाना प्रकार के दुर्व्यस के आदी भी हुए हैं। जनसंख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। महगाई का एक मुख्य कारण जनसँख्या बढ़ने के कारण।

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हमारी सरकार द्वारा निर्धारित कोटा-परमिट की पद्धति ने दलालों के नये वर्ग को जन्म दिया है और इसी परिपाटी ने विक्रेता तथा उपभोक्ता में संचय की प्रवृत्ति उत्पन्न कर दी है। प्रशासन के अधिकारी दुकानदारों को कालाबाजारी करने देने के बदले घूस तथा उद्योगपतियों को अनियमितता की छूट देने हेतु  राजनीतिक पाटियाँ घुस तथा चन्दा वसूलती हैं।

महगाई ने विभिन्न वर्गों के कर्मचारियों को हड़ताल आन्दोलन करने के लिए भी बढ़ावा दिया है जिससे काम नहीं करने पर भी कर्मचारियों को वेतन देना पड़ता है, जिससे उत्पादन में गिरावट और तैयार माल की लागत में बढ़ोत्तरी होती है।

महंगाई की समस्या का अन्त सम्भव हो तो कैसे, यह विचारणीय विषय है। सरकार वस्तुओं की कीमतों पर अंकुश लगाए, भ्रष्ट व्यक्तियों हेतु दण्ड व्यवस्था की कठोर बनाए एवं व्यापारी वर्ग को कीमतें नहीं बढ़ाने को बाध्य करे। साथ ही, देशवासी भी मनोयोगपूर्वक राष्ट्र का उत्पादन बढ़ाने में योगदान करें और पदाधिकारी उपभोक्ता वस्तुओं की वितरण व्यवस्था पर नियंत्रण रखें। तात्पर्य यह है कि इस कमरतोड़ महगाई के पिशाच को जनता, पूँजीपति और सरकार के सम्मिलित प्रयास

से ही नियंत्रण में किया जा सकता है ।

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बेरोजगारी

भूखा मनुष्य क्या पाप नहीं करता, धन से क्षीण मनुष्य दयनीय हो जाता है, उसे कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक नहीं होता है। वहीं दशा आज के युग में विद्यमान है। चारों ओर चोरी डकैतियों की दुपाएँ, छीना-झपटी, लूट-खसोट और कत्ल के हृदयविदारक समाचार सुनायो पढ़ते हैं। कहीं बैंक खजाने को लूटने का समाचार अखबार में छपा हुआ मिलता है, कहीं गाड़ियों को रोकने व लूटने के हालात समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलते हैं। आज देश में स्थान-स्थान पर उपद्रव और हड़ताल हो रही हैं। बेरोजगरी का मुख्य कार्य जनसख्या वृद्धि भी है।

हर व्यक्ति को अपनी और अपने परिवार को रोटियों की चिन्ता है, चाहे उनका उपार्जन सदाचार से हो या दुराचार से। आज चाहे फावड़ा चलाकर तथा पसीना बहाकर गटियाँ खान वाले श्रमिक हो, चाहे अनवरत बौद्धिक श्रम करने वाले, समाज के शत्रु, विद्वान, सभी बकारी और बेरोजगारी के शिकार हैं। निरक्षर तो किसी तरह अपना पेट भर लेते हैं, किन्तु पढ़े लिखों को आज खुरी हालत है। वे बेचारे क्या करें, कैसे जीवन चलाएँ, यह आज की बड़ी कठिन समस्या है। बेरोजगरी का मुख्य कार्य जनसख्या वृद्धि भी है।

आज हमारे समाज के शिक्षितों में बेरोजगारी है और कृषि के क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी है, क्योंकि एक आदमी के काम को चार आदमी मिलकर कर रहा है। आज कॉलेज को डिग्रियाँ प्राप्त कर शिक्षित नवयुवक नौकरियों की तलाश में भटक रहे हैं। वैभवशाली भावी जीवन की उपलि को आशा में उन्होंने अपने आत्मबल की खो दिया है। इस कारण समाज में बेकारों की संख्या द्रुतगती से बढ़ रही है। शिक्षित बेरोजगारों के लिए शिक्षा वरदान नहीं अभिशाप बन गई है ।
प्राचीन काल में हमारे देश में हजारों छोटे-छोटे गृह उद्योगों से लोग अपना जीविकोपार्जन थे। लेकिन अंग्रेजों को नीति ने गृह उद्योगों को नष्ट कर दिया तथा मशीनों के बाहुल्य के का इस अकर्मण्य हो गए। बेरोजगरी के ये भी हो सकता है लोग जिंदगी को मजाक में जीत है।

 पर्यावरण संरक्षण( Mhgae par nibndh likhe)

 

पर्यावरण का अर्थ:-  ‘पर्यावरण’ का शाब्दिक अर्थ है-चारों ओर का वातावरण में सब साँस लेते हैं। इसके अंतर्गत वायु, जल, धरती, ध्वनि आदि से युक्त पूरा प्राकृतिक वातावरण आ जाता है।

प्रदूषण के कारण :-  आज हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिस पर्यावरण में हमारा जीवन पलता है, वही प्रदूषित होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है-अंधाधुध वैज्ञानिक प्रगति । अधिक उत्पादन की होड़ में हमने अत्यधिक कल-कारखाने लगा लिए हैं। उनके द्वारा उत्पादित रासायनिक कचरा, गंदा जल, और मशीनों से उत्पन्न शोर हमारे पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। परमाणु ऊर्जा के प्रयोग ने आकाश में व्याप्त ओजोन गैस की परत में छेद कर दिया है।

प्रदूषण बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण है- जनसंख्या विस्फोट । अत्यधिक जनसंख्या को अन्न-जल-स्थल देने के लिए वनों का काटना आवश्यक हो गया। इससे भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा।

प्रदूषण के प्रकार :-   प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं। उनमें कुछ मुख्य प्रदूषण इस प्रकार है-

वायु प्रदूषण:-  आज महानगरों की वायु पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। तेल से चलने वाले

वाहनों और बड़े-बड़े उद्योगों के कारण वायु में विषैले तत्त्व घुल गए हैं। इनके कारण अनेक असाध्य.

(Mhgae par nibndh likhe)

 

रोग उत्पन्न होने लगे हैं। जल प्रदूषण फैक्टरियों से निकले दूषित कचरे के कारण न केवल नदी नाले प्रदूषित हुए हैं, बल्कि भूमिगत जल भी दूषित होने लगा है। जिन क्षेत्रों में फैक्टरियाँ अधिक हैं, वहाँ प्रायः धरती से लाल काला जल बाहर निकलता है। ध्वनि-प्रदूषण-आज फैक्टरियों, मशीनों, ध्वनि विस्तारकों, वाहनों और आनंद-उत्सवों में इतना पर्यावरण का सरक्षण तब जब पेड़ को अपना जिंदगी मने गए तब पर्यावरण का सरक्षण हो सकता है।

अधिक शोर होने लगा है कि लोग बहरे होने लगे हैं। शोर तनाव को भी बढ़ाता है। प्रदूषण का निवारण प्रदूषण की रोकथाम का उपाय लोगों के हाथ में है। इसे जनचेतना से रोका जा सकता है। यद्यपि सरकारें भी जनहित में अनेक उपाय कर रही हैं। हरियाली को बढावा “देना, वृक्ष उगाना, प्रदूषित जल और मल का उचित संसाधन करना, शोर पर नियंत्रण करना-ये उपाय सरकार और जनता दोनों को अपनाना चाहिए। हर व्यक्ति इन प्रदूषणों को रोकने की ठान ले, तभी इसका निवारण संभव है। पर्यावरण का सरक्षण तब जब पेड़ को अपना जिंदगी मने गए तब पर्यावरण का सरक्षण हो सकता है।

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